आख़िर इक रोज़ तो पैवंद-ए-ज़मीं होना है By Sher << ख़ुदा भी कैसा हुआ ख़ुश मि... बेहतर है अब दूर रहो तुम ट... >> आख़िर इक रोज़ तो पैवंद-ए-ज़मीं होना है जामा-ए-ज़ीस्त नया और पुराना कैसा Share on: