आख़िर को रूह तोड़ ही देगी हिसार-ए-जिस्म By Sher << आ ही गए हैं ख़्वाब तो फिर... ज़रा सी चाय गिरी और दाग़ ... >> आख़िर को रूह तोड़ ही देगी हिसार-ए-जिस्म कब तक असीर ख़ुशबू रहेगी गुलाब में Share on: