आलम-ए-मस्ती में मेरे मुँह से कुछ निकला जो रात By Sher << आलूदा-ब-ख़ूँ चश्म से टपके... आज घेरा ही ही था उसे मैं ... >> आलम-ए-मस्ती में मेरे मुँह से कुछ निकला जो रात बोल उठा तेवरी चढ़ा कर वो बुत-ए-मय-ख़्वार चुप Share on: