आशिक़ का बाँकपन न गया बाद-ए-मर्ग भी By Sher << तमाम मज़हर-ए-फ़ितरत तिरे ... आज डूबा हुआ ख़ुशबू में है... >> आशिक़ का बाँकपन न गया बाद-ए-मर्ग भी तख़्ते पे ग़ुस्ल के जो लिटाया अकड़ गया Share on: