आसमाँ अहल-ए-ज़मीं से क्या कुदूरत-नाक था By Sher << पूछो ज़रा ये चाँद से कैसे... धुआँ जो कुछ घरों से उठ रह... >> आसमाँ अहल-ए-ज़मीं से क्या कुदूरत-नाक था मुद्दई भी ख़ाक थी और मुद्दआ' भी ख़ाक था Share on: