आस्तीन-ए-मौज दरिया से जुदा होती नहीं By Sher << आया था शब को छुप के वो रश... आँख उठा कर उसे देखूँ हूँ ... >> आस्तीन-ए-मौज दरिया से जुदा होती नहीं रब्त तेरा चश्म से क्यूँ आस्तीं जाता रहा Share on: