आते नज़र हैं दश्त-ओ-जबल ज़र्द हर तरफ़ By बसंत, Sher << इताब-ओ-क़हर का हर इक निशा... मज़ा बरसात का चाहो तो इन ... >> आते नज़र हैं दश्त-ओ-जबल ज़र्द हर तरफ़ है अब के साल ऐसी है ऐ दोस्ताँ बसंत Share on: