अब न वो अहबाब ज़िंदा हैं न रस्म-उल-ख़त वहाँ By Sher << मैं तीरगी को अमानत तिरी स... दफ़्तर में ज़ेहन घर निगह ... >> अब न वो अहबाब ज़िंदा हैं न रस्म-उल-ख़त वहाँ रूठ कर उर्दू तो देहली से दकन में आ गई Share on: