अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए By Sher << ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाह... मचलती शोख़ मौजों को मैं अ... >> अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए जिस में इंसान को इंसान बनाया जाए Share on: