मचलती शोख़ मौजों को मैं अपने नाम क्यूँ लिक्खूँ By Sher << अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चल... दुख पे मेरे रो रहा था जो ... >> मचलती शोख़ मौजों को मैं अपने नाम क्यूँ लिक्खूँ कि आख़िर ख़ुश्क होगा मौसम-ए-बरसात का दरिया Share on: