फिर आज 'अदम' शाम से ग़मगीं है तबीअत By फ़ेमस शायरी, Sher << रोज़ काग़ज़ पे बनाता हूँ ... मानी हैं मैं ने सैकड़ों ब... >> फिर आज 'अदम' शाम से ग़मगीं है तबीअत फिर आज सर-ए-शाम मैं कुछ सोच रहा हूँ Share on: