अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ By Sher << जिस्म पाबंद-ए-गुल सही ... यही जम्हूरियत का नक़्स है... >> अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ Share on: