अफ़सोस माबदों में ख़ुदा बेचते हैं लोग By Sher << मुझ को मिरे वजूद से कोई न... मैं मकीं हूँ न मकाँ शहर-ए... >> अफ़सोस माबदों में ख़ुदा बेचते हैं लोग अब मअनी-ए-सज़ा-ओ-जज़ा कुछ नहीं रहा Share on: