अफ़सोस किसी से मिट न सकी इंसान के दिल की तिश्ना-लबी By Sher << हिदायत शैख़ करते थे बहुत ... दम-ए-तकफ़ीन भी गर यार आवे >> अफ़सोस किसी से मिट न सकी इंसान के दिल की तिश्ना-लबी शबनम है कि रोया करती है बादल हैं कि बरसा करते हैं Share on: