क्यूँ तीरगी से इस क़दर मानूस हूँ 'ज़फ़र' By Sher << इस क़दर पुर-ख़ुलूस लहजा ह... मुख़ालिफ़ों ने ख़बर जब को... >> क्यूँ तीरगी से इस क़दर मानूस हूँ 'ज़फ़र' इक शम-ए-राह-गुज़र कि सहर तक जली भी है Share on: