ऐसे हालात में इक रोज़ न जी सकते थे By Sher << फ़नकार ब-ज़िद है कि लगाएग... अभी ज़मीन को हफ़्त आसमाँ ... >> ऐसे हालात में इक रोज़ न जी सकते थे हम को ज़िंदा तिरे पैमान-ए-वफ़ा ने रक्खा Share on: