ऐसी ज़िद का क्या ठिकाना अपना मज़हब छोड़ कर By Sher << साए लरज़ते रहते हैं शहरों... ये कहना था उन से मोहब्बत ... >> ऐसी ज़िद का क्या ठिकाना अपना मज़हब छोड़ कर मैं हुआ काफ़िर तो वो काफ़िर मुसलमाँ हो गया Share on: