मैं गहरे पानियों को चीर देता हूँ मगर 'हसरत' By Sher << मरज़-ए-इश्क़ को शिफ़ा समझ... जान भी साथ छोड़ देती है >> मैं गहरे पानियों को चीर देता हूँ मगर 'हसरत' जहाँ पानी बहुत कम हो वहाँ मैं डूब जाता हूँ Share on: