अजीब क़ैद थी जिस में बहुत ख़ुशी थी मुझे By Sher << 'अदम' रोज़-ए-अजल ... आहों से सोज़-ए-इश्क़ मिटा... >> अजीब क़ैद थी जिस में बहुत ख़ुशी थी मुझे अब अश्क थमते नहीं हैं ये क्या रिहा हुआ मैं Share on: