पड़ जाएँ मिरे जिस्म पे लाख आबले 'अकबर' By गर्मी, Sher << मज़मून-ए-सर्द-मेहरी-ए-जान... जिसे सय्याद ने कुछ गुल ने... >> पड़ जाएँ मिरे जिस्म पे लाख आबले 'अकबर' पढ़ कर जो कोई फूँक दे अप्रैल मई जून Share on: