अल्फ़ाज़ न आवाज़ न हमराज़ न दम-साज़ By Sher << औरत हूँ मगर सूरत-ए-कोहसार... ज़िंदगी कट गई मनाते हुए >> अल्फ़ाज़ न आवाज़ न हमराज़ न दम-साज़ ये कैसे दोराहे पे मैं ख़ामोश खड़ी हूँ Share on: