'मुल्ला' बना दिया है इसे भी महाज़-ए-जंग By Sher << न जाने कितनी शमएँ गुल हुई... मुख़्तसर अपनी हदीस-ए-ज़ीस... >> 'मुल्ला' बना दिया है इसे भी महाज़-ए-जंग इक सुल्ह का पयाम थी उर्दू ज़बाँ कभी Share on: