न जाने कितनी शमएँ गुल हुईं कितने बुझे तारे By Sher << नज़र जिस की तरफ़ कर के नि... 'मुल्ला' बना दिया... >> न जाने कितनी शमएँ गुल हुईं कितने बुझे तारे तब इक ख़ुर्शीद इतराता हुआ बाला-ए-बाम आया Share on: