मैं अपने दुश्मनों का किस क़दर मम्नून हूँ 'अनवर' By Sher << खिला रहेगा किसी याद के जज... 'इंशा'-जी उठो अब ... >> मैं अपने दुश्मनों का किस क़दर मम्नून हूँ 'अनवर' कि उन के शर से क्या क्या ख़ैर के पहलू निकलते हैं Share on: