अपने जुनूँ-कदे से निकलता ही अब नहीं By Sher << ये राह-ए-इश्क़ है आख़िर क... जिन पे नाज़ाँ थे ये ज़मीन... >> अपने जुनूँ-कदे से निकलता ही अब नहीं साक़ी जो मय-फ़रोश सर-ए-रहगुज़ार था Share on: