जिन पे नाज़ाँ थे ये ज़मीन ओ फ़लक By Sher << अपने जुनूँ-कदे से निकलता ... एक मंज़र है कि आँखों से स... >> जिन पे नाज़ाँ थे ये ज़मीन ओ फ़लक अब कहाँ हैं वो सूरतें बाक़ी Share on: