अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ By Sher << भला हम मिले भी तो क्या मि... शहर भर के आईनों पर ख़ाक ड... >> अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ मुझ से तय ही नहीं होती है मसाफ़त मेरी Share on: