अपनी बुलंदियों से गिरूँ भी तो किस तरह By Sher << बिखर के टूट गए हम बिखरती ... आदमी बन के मिरा आदमियों म... >> अपनी बुलंदियों से गिरूँ भी तो किस तरह फैली हुई फ़ज़ाओं में बिखरा हुआ हूँ मैं Share on: