'अरमाँ' बस एक लज़्ज़त-ए-इज़हार के सिवा By Sher << अजब ठहराव पैदा हो रहा है ... ऐ शब-ए-ग़म मिरे मुक़द्दर ... >> 'अरमाँ' बस एक लज़्ज़त-ए-इज़हार के सिवा मिलता है क्या ख़याल को लफ़्ज़ों में ढाल कर Share on: