ऐ शब-ए-ग़म मिरे मुक़द्दर की By Sher << 'अरमाँ' बस एक लज़... ख़्वाब में जागती बे-ख़्वा... >> ऐ शब-ए-ग़म मिरे मुक़द्दर की तेरे दामन में इक सहर होती Share on: