अर्श तक जाती थी अब लब तक भी आ सकती नहीं By Sher << बदन भीगेंगे बरसातें रहेंग... उस मंज़िल-ए-हयात में अब ग... >> अर्श तक जाती थी अब लब तक भी आ सकती नहीं रहम आ जाता है क्यूँ अब मुझ को अपनी आह पर it cannot even reach my lips, it used to reach the highest skies i feel compassion at the sorry condition of my sighs Share on: