उस मंज़िल-ए-हयात में अब गामज़न है दिल By Sher << अर्श तक जाती थी अब लब तक ... ज़ब्त-ए-ग़म कर भी लिया तो... >> उस मंज़िल-ए-हयात में अब गामज़न है दिल 'शिबली'! जहाँ किसी की भी आवाज़-ए-पा नहीं Share on: