अश्क-बारी से ग़म-ओ-दर्द की खेती-बाड़ी By Sher << बदलती रहती हैं क़द्रें रह... ग़नीमत बूझ लेवें मेरे दर्... >> अश्क-बारी से ग़म-ओ-दर्द की खेती-बाड़ी लहलही सी नज़र आती है हरी रहती है Share on: