हम-अस्रों में ये छेड़ चली आई है 'अज़हर' By Sher << हर एक रात को महताब देखने ... ग़ज़ल का शेर तो होता है ब... >> हम-अस्रों में ये छेड़ चली आई है 'अज़हर' याँ 'ज़ौक़' ने 'ग़ालिब' को भी ग़ालिब नहीं समझा Share on: