ग़ज़ल का शेर तो होता है बस किसी के लिए By Sher << हम-अस्रों में ये छेड़ चली... घर से किस तरह मैं निकलूँ ... >> ग़ज़ल का शेर तो होता है बस किसी के लिए मगर सितम है कि सब को सुनाना पड़ता है Share on: