बदन के दोनों किनारों से जल रहा हूँ मैं By Sher << कैसा झूटा सहारा है ये दुख... रह गया दिल में इक दर्द सा >> बदन के दोनों किनारों से जल रहा हूँ मैं कि छू रहा हूँ तुझे और पिघल रहा हूँ मैं Share on: