बदन में दिल था मुअल्लक़ ख़ला में नज़रें थीं By Sher << न चारागर की ज़रूरत न कुछ ... ज़माने के दरबार में दस्त-... >> बदन में दिल था मुअल्लक़ ख़ला में नज़रें थीं मगर कहीं कहीं सीने में दर्द ज़िंदा था Share on: