बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ By Sher << हर मरहला-ए-ग़म में मिली इ... वो लुत्फ़ उठाएगा सफ़र का >> बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर why did you bid me leave from paradise for now my work is yet unfinished here so you wil have to wait Share on: