रोज़ मामूरा-ए-दुनिया में ख़राबी है 'ज़फ़र' By Sher << नग़्मों की इब्तिदा थी कभी... उठते नहीं हैं अब तो दुआ क... >> रोज़ मामूरा-ए-दुनिया में ख़राबी है 'ज़फ़र' ऐसी बस्ती को तो वीराना बनाया होता Share on: