बहुत हैं सज्दा-गाहें पर दर-ए-जानाँ नहीं मिलता By Sher << बस्तियों में होने को हादस... लब-ए-नाज़ुक के बोसे लूँ त... >> बहुत हैं सज्दा-गाहें पर दर-ए-जानाँ नहीं मिलता हज़ारों देवता हैं हर तरफ़ इंसाँ नहीं मिलता Share on: