बाज़ार हैं ख़ामोश तो गलियों पे है सकता By Sher << आईना कभी क़ाबिल-ए-दीदार न... ऐसी तरक़्क़ी पर तो रोना ब... >> बाज़ार हैं ख़ामोश तो गलियों पे है सकता अब शहर में तन्हाई का डर बोल रहा है Share on: