बर्ग-ए-आवारा को अब अपना पता याद नहीं By Sher << दूर हम कर न सके कोर-निगाह... ये खचा-खच भरी हुई वहशत >> बर्ग-ए-आवारा को अब अपना पता याद नहीं क्या हुआ तेज़ हवाओं की पज़ीराई में Share on: