बरसों भटका किया और फिर भी न उन तक पहुँचा By Sher << तुम्हारे हिज्र में क्यूँ ... गोया कि सब ग़लत हैं मिरी ... >> बरसों भटका किया और फिर भी न उन तक पहुँचा घर तो मालूम था रस्ता मुझे मालूम न था Share on: