बस दरीचे से लगे बैठे रहे अहल-ए-सफ़र By Sher << बिखर गया तो मुझे कोई ग़म ... बहुत से रोग दुआ माँगने से... >> बस दरीचे से लगे बैठे रहे अहल-ए-सफ़र सब्ज़ा जलता रहा और याद-ए-वतन आती रही Share on: