भूलती हैं कब निगाहें चश्म-ए-जादू-ख़ेज़ की By Sher << एक से दो दाग़ दो से चार फ... अल्लाह रे तरद्दुद-ए-ख़ाति... >> भूलती हैं कब निगाहें चश्म-ए-जादू-ख़ेज़ की हम को सामान-ए-फ़रामोशी सब अपना याद है Share on: