एक से दो दाग़ दो से चार फिर तो सैकड़ों By Sher << गुंग हैं जिन को ख़मोशी का... भूलती हैं कब निगाहें चश्म... >> एक से दो दाग़ दो से चार फिर तो सैकड़ों खिलते खिलते फूल सीने पर गुलिस्ताँ हो गया Share on: