बिन तुम्हारे कभी नहीं आई By Sher << तर्क-ए-वतन के बाद ही क़द्... रंग-ए-महफ़िल चाहता है इक ... >> बिन तुम्हारे कभी नहीं आई क्या मिरी नींद भी तुम्हारी है Share on: