रंग-ए-महफ़िल चाहता है इक मुकम्मल इंक़लाब By Sher << बिन तुम्हारे कभी नहीं आई अपना नहीं ये शेवा कि आराम... >> रंग-ए-महफ़िल चाहता है इक मुकम्मल इंक़लाब चंद शम्ओं के भड़कने से सहर होती नहीं Share on: