ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ मेरे अश्क-ए-ग़म की तर्जुमानी है By Sher << 'आजिज़' की हैं उल... चारों तरफ़ हैं शोले हम-सा... >> ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ मेरे अश्क-ए-ग़म की तर्जुमानी है कोई कहता है मोती है कोई कहता है पानी है Share on: