बुत-ख़ाने में क्या याद-ए-इलाही नहीं मुमकिन By Sher << 'फ़राज़' तेरे जुन... तिरी तेग़ की आब जाती रही ... >> बुत-ख़ाने में क्या याद-ए-इलाही नहीं मुमकिन नाक़ूस से क्या कार-ए-अज़ाँ हो नहीं सकता Share on: